Sunday, 3 February 2013

ग़ुलाम वंश


ग़ुलाम वंश दिल्ली में कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा 1206 ई. में स्थापित किया गया था। यह वंश 1290 ई. तक शासन करता रहा। इसका नाम ग़ुलाम वंश इस कारण पड़ा कि इसका संस्थापक और उसके इल्तुतमिश और बलबन जैसे महान उत्तराधिकारी प्रारम्भ में ग़ुलाम अथवा दास थे और बाद में वे दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने में समर्थ हुए। कुतुबद्दीन (1206-10 ई.) मूलत: शहाबुद्दीन मोहम्मद ग़ोरी का तुर्क दास था और 1192 ई. के 'तराइन के युद्ध' में विजय प्राप्त करने में उसने अपने स्वामी की विशेष सहायता की। उसने अपने स्वामी की ओर से दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुसलमानों की सल्तनत पश्चिम में गुजरात तथा पूर्व में बिहार और बंगाल तक, 1206 ई. में ग़ोरी की मृत्यु के पूर्व में ही, विस्तृत कर दी।

दिल्ली के सिंहासन पर यह वंश 1206 ई. से 1290 ई. तक आरूढ़ रहा। इसका संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गोरी का तुर्क दास था। पर उसकी योग्यता देखकर गोरी ने उसे दासता से मुक्त कर दिया। कुतुबुद्दीन मूलत: ग़ुलाम था। इसलिए यह राजवंश ग़ुलाम वंश कहलाता है। वह 1210 ई. तक गद्दी पर रहा। कहते हैं, दिल्ली की क़ुतुबमीनार का निर्माण-कार्य उसने ही आरंभ कराया था। 
इस वंश का दूसरा प्रसिद्ध शासक इल्तुतमिश था जिसने 1211 ई. से 1236 ई. तक शासन किया। उसके समय में साम्राज्य का बहुत विस्तार हुआ और कश्मीर से नर्मदा तक तथा बंगाल से सिंधु तक का भू-भाग ग़ुलाम वंश के अधीन आ गया। इल्तुतमिश के बेटे बड़े विलासी थे। अत: कुछ समय बाद (1236 ई. में) उसकी पुत्री रजिया बेगम गद्दी पर बैठी। रजिया बड़ी बुद्धिमान महिला थी। वह मर्दाने वस्त्र पहनकर दरबार में बैठती थी। पर षड्यंत्रों से अपने को नहीं बचा सकी और 1240 ई. में उसकी हत्या कर दी गई।
इसी वंश में एक और प्रमुख शासक हुआ- सुलतान ग़यासुद्दीन बलबन। बलबन भी मूलत: इल्तुतमिश का ग़ुलाम था इसने 1266 से 1287 ई. तक शासन किया। इसके समय में राज्य में शांति व्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी हो गई थी। अमीर खुसरों ग़ुलाम शासकों के ही संरक्षित विद्वान थे।

ग़ुलाम वंश के शासक


1206 से 1290 ई. के मध्य 'दिल्ली सल्तनत' पर जिन तुर्क शासकों द्वारा शासन किया गया उन्हें 'ग़ुलाम वंश' का शासक माना जाता है। इस काल के दौरान दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले राजवंश थे-

कुतुबुद्दीन ऐबक का 'कुत्बी'
इल्तुतमिश (अल्तमश) का 'शम्सी'
बलबन का 'बलवनी'
इन शासकों को 'ग़ुलाम वंश' का शासक कहना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि इन तीनों तुर्क शासकों का जन्म स्वतंत्र माता पिता से हुआ था। इसलिए इन्हें 'प्रारम्भिक तुर्क' शासक व 'मामलूक' शासक कहना अधिक उपयुक्त होगा।
इतिहासकार अजीज अहमद ने इन शासकों को दिल्ली के 'आरम्भिक तुर्क शासकों' का नाम दिया है।
'मामलूक' शब्द का अर्थ होता है- स्वतंत्र माता पिता से उत्पन्न दास।
'मामलूक' नाम इतिहासकार हबीबुल्लाह ने दिया है। ऐबक, इल्तुतमिश, एवं बलवन 'इल्बारी तुर्क' थे।
ग़ुलाम राजवंश ने लगभग 84 वर्षों तक इस उप महाद्वीप पर शासन किया। यह प्रथम 'मुस्लिम राजवंश' था जिसने भारत पर शासन किया।
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 - 1210) इस वंश का प्रथम शासक था ।
आरामशाह (1210 - 1211)
इल्तुतमिश (1211 - 1236),
रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह (1236)
रज़िया सुल्तान (1236 - 1240)
मुइज़ुद्दीन बहरामशाह (1240 - 1242 )
अलाउद्दीन मसूद (1242 - 46 ई.)
नसीरूद्दीन महमूद (1245 - 1265)
अन्य कई शासकों के बाद उल्लेखनीय रूप से ग़यासुद्दीन बलबन (1250 - 1290) सुल्तान बने ।

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